थूक लगाकर पन्ने पलटने पर हाईकोर्ट सख्त

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ की एकल पीठ ने आदेश दिया है कि हाईकोर्ट में अगर थूक लगी कोई फाइल आती है तो उसे तत्काल अस्वीकार कर दिया जाए। साथ ही हाईकोर्ट ने इस बाबत अन्य कार्यालयों में भी इस आदेश को सख्ती से लागू करने का आदेश भेजने का निर्देश जारी किया है।

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लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ की एकल पीठ ने आदेश दिया है कि हाईकोर्ट में अगर थूक लगी कोई फाइल आती है तो उसे तत्काल अस्वीकार कर दिया जाए। साथ ही हाईकोर्ट ने इस बाबत अन्य कार्यालयों में भी इस आदेश को सख्ती से लागू करने का आदेश भेजने का निर्देश जारी किया है।

कुछ केस की फाइलों में दाखिल किए गए पन्नों पर लाल थूक लगे होने पर हाईकोर्ट ने ये सख्त रुख अपनाया है। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे गंदे और घृणास्पद चलन से संपर्क में आने वालों में संक्रमण का खतरा है। कोर्ट ने इसे निंदनीय और बुनियादी समझ की कमी करार देते हुए इसे किसी हाल में अस्वीकार्य बताया है। इस प्रकार हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद ये अब तय हो गया है कि प्रदेश के अदालती दस्तावेजों में लाल थूक लगाने की परंपरा खत्म हो जाएगी। हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने फाइलों और याचिकाओं के पन्ने पलटने में ‘लार’ के इस्तेमाल पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। पीठ ने कहा कि अगर कोई पान, पान मसाला खाने वाला व्यक्ति लार (थूक) का इस्तेमाल करता है, तो पन्नों पर लाल धब्बे पड़ जाते हैं, और इससे संक्रमण का खतरा हो सकता है। पीठ ने इसकी गंभीरता को देखते हुए अपनी रजिस्ट्री और सरकारी कार्यालयों को निर्देश दिया कि अगर पेपर बुक का कोई पन्ना लार के इस्तेमाल के कारण लाल पाया जाता है, तो वे कोई भी फाइल स्वीकार न करें।

* दिया आदेश, थूक के इस्तेमाल वाली फाइल मिलें तो तत्काल अस्वीकार कर दें
* कोर्ट ने अन्य कार्यालयों के लिए भी इस बाबत आदेश भेजने के दिए निर्देश

बहराइच की कृष्णावती की याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस श्रीप्रकाश सिंह ने आदेश की शुरुआत ही इस पर तीखी टिप्पणी से की। उन्होंने कहा कि अदालत ने सुबह से अब तक दाखिल 10 से अधिक याचिकाओं और आवेदनों में लाल रंग के थूक के दाग पाए, जिन्हें पन्ने पलटने के लिए इस्तेमाल किया गया था। कोर्ट ने आशंका जताई कि ये प्रथा निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक यानी मुंशियों, ओथ कमिश्नरों, रजिस्ट्री कर्मचारियों, शासकीय अधिवक्ता और मुख्य स्थायी अधिवक्ता के दफ्तरों में प्रचलित है। कोर्ट ने लाल थूक मामले में कहा कि यह गंदी प्रथा अत्यंत अस्वच्छ है। ये बुनियादी नागरिक समझ की कमी दर्शाता है।

उच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा कि अगर इस तरह की गंदी प्रथा पर लगाम नहीं लगाई गई, तो इससे उन लोगों को संक्रमण हो सकता है जो ऐसे कागज़ों के संपर्क में आएंगे। पीठ ने कहा कि इस कारण इस प्रथा को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। पीठ ने सरकारी अधिवक्ता और मुख्य स्थायी अधिवक्ता के कार्यालय को भी निर्देश दिया कि वे अपने कार्यालयों में भी उक्त निर्देशों का पालन सुनिश्चित करें। कोर्ट ने आदेश अनुपालन के लिए अपने अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी करने का भी निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति श्रीप्रकाश सिंह की पीठ ने बीते 22 सितंबर को कृष्णावती और एक अन्य की याचिका पर सुनवाई के दौरान जैसे ही फाइल अपने हाथ में ली तो पाया कि अदालत में पेश करने से पहले पेपर बुक के पन्नों को पलटने के लिए लाल रंग की लार का इस्तेमाल किया गया था। इस पर पीठ का कहना था कि ऐसा तब हुआ होगा, जब पेपर बुक वकील, क्लर्क, शपथ आयुक्त या रजिस्ट्री अधिकारियों द्वारा तैयार की जा रही थी। यह दिक्कत सरकारी वकील या मुख्य स्थायी परिषद के कार्यालय में भी हो सकता है। पीठ ने कहा कि उसने ऐसी चीजें हर दूसरे दिन देखी हैं, और इसलिए उसे प्रतिबंध का आदेश देने के लिए बाध्य होना पड़ा है।

दूसरे के लार के संपर्क में आने से कई बीमारियों की आशंका 

* दूसरे व्यक्ति की लार छूने या उसके संपर्क में आने से इसमें मौजूद वायरस और बैक्टीरिया से कई संक्रमण हो सकते हैं।
* लार के माध्यम से हाथों पर आए बैक्टीरिया या वायरस भोजन के रास्ते पेट में प्रवेश कर सकते हैं और पेट का संक्रमण) पैदा कर सकते हैं।
* अगर हाथ या उंगलियों पर कोई खुला घाव या कट है और दूषित लार के संपर्क में आता है, तो संक्रमण का खतरा बहुत होता है।
* आँखों, नाक या मुँह को छूने से लार में मौजूद रोगाणु सीधे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।

अभयानंद शुक्ल