भारत पर लटकी यूरोप की दोधारी तलवार. यूरोपीय संघ के ताजा परिदृश्य और इसके आगे होने वाले बदलावों के संकेतों से भारत के आर्थिक हित निश्चित रूप से प्रभावित होंगे। भारतीय कारोबार पर यूरोप की दोथारी तलवार लटकने ही वाली है, जिससे यथाशीघ्र, यथाशक्ति सचेत होकर कारोबारी झटके से बचने के लिए निर्यात बढ़ाने के विकल्प तलाशने की तात्कालिक जरूरत सामने खड़ी हो गई है। भारत सरकार और निजी क्षेत्र दोनों के आपसी तालमेल से आने वाली समस्या को अवसर में तब्दील भी किया जा सकता है।
यूरोपीय संघ (ईयू) ग्रीन हाउस गैस, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को लेकर बहुत ज्यादा सजग है। तकनीकी रूप से सक्षम यूरोपीय संघ ने आयात होने वाले साजो-सामान पर अपने नए नियम -कानून या तो बना लिए हैं या बहुत शीघ्र तैयार कर लेगा और संभवतः आने वाले महीनों में इन्हें लागू भी कर देगा। इनके प्रभावी होते ही यूरोपीय संघ का ‘क्राॅस बाॅर्डर एडजस्टमेंट मकेनिज़्म’ जोकि नवसृजित शून्य उत्सर्जन प्रणाली है, और ‘एमिशन ट्रेडिंग सिस्टम’ के तहत भारतीय निर्यातकों को अपने उत्पादों का निर्यात करना पड़ेगा।
अगर भारतीय उद्योगों-निर्यातकों ने यूरोपीय संघ के नए उत्सर्जन मानकों के अनुरूप बदलाव नहीं किए तो उस स्थिति में भारतीय उत्पादों को यूरोपीय देशों की सीमा में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। यह तो यूरोपीय संघ की तलवार की एक धार का संक्षिप्त ब्यौरा हुआ। अब तलवार की दूसरी फलक को समझिए। समूचे यूरोप पर मंदी के बादल मंडरा रहे हैं। इसका एकमात्र कारण रूस-यूक्रेन युद्ध का लम्बा खिंचना। यह जितना अधिक चलेगा उतना ही इसकी सबसे ज्यादा मार यूरोप पर पड़ रही है आगे और पड़़ना अवश्यंभावी है। साथ ही अन्य तमाम देश, जिनमें भारत भी है भी इसकी चपेट में आने से बच नहीं पाएंगे। यूक्रेन-रूस युद्ध त्रासदी से 1_1.10 करोड़ लोग विस्थापित हुए।
युद्ध की वजह से यूके सहित पूरे यूरोक्षेत्र में गैस ईंधन और बिजली में मुद्रास्फीति अप्रैल में रिकॉर्ड 77 प्रतिशत हो गई थी, अब तो काफी घट गई है। सरकारी व्यय में काफी गिरावट आने से स्थिति और खराब हुई ।खाद्य-पदार्थों की कीमतें काफी बढ़ने से लोगों की रोज़मर्रा मुश्किलें बढ़ीं हैं। यूरोक्षेत्र में बीस देश आते हैं। इनमें सबसे संपन्न अर्थव्यवस्था जर्मनी की है जो क्षेत्र की समग्र जीडीपी में सर्वाधिक 28-29 प्रतिशत का योगदान करती है पिछली तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि जर्मनी में हल्की मंदी आई है। यूरोक्षेत्र के आयरलैंड, नीदरलैंड्स, एस्टोनिया, ग्रीस, माल्टा के आर्थिक आंकड़े मंदी की शुरुआत दर्शाते हें। फ्रांस, स्पेन, इटली, की विकास दर में कोई वृद्धि नहीं हुई।
इन हालातों से उबरने के लिए यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड ने 15 जून को बाईस वर्षों के इतिहास में पहली बार ब्याज दर 25 बेसिस प्वाइंट बढ़ाकर 3.5 प्रतिशत कर दी। भारत से यूरोपीय संघ को 2021_22 में 6500 करोड़ डॉलर का सामान निर्यात किया गया, उस समयडॉलर की विनिमय दर 80 रुपए भी मान लें तो 5_5.25 लाख करोड़ रुपए होते हैं भारत झींगा, ज्वेलरी, पेट्रोरसायन, फुटवियर, आटो पुर्जे, तंबाकू, एल्यूमिनियम, स्टील, फार्मा-उत्पाद, चावल, तिल, काजू,अंगूर, काॅफी, अरंडी का तेल, सोयाखली आदि का निर्यात किया जाता है। अब जो स्थितियां दस्तक दे रही हैं वे भारतीय निर्यातकों से कह रही हैं कि वे समय गंवाए बिना अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया क्षैत्र को निर्यात बढ़ाने की रणनीति अपनाएं।
इसकी सख्त जरूरत इसलिए भी है क्योंकि पिछले पांच महीनों से भारतीय निर्यात का प्रदर्शन निराश करने वाला रहा है। निर्यात में चालू वित्तीय वर्ष 2023_24 के पहले दो माह अप्रैल में 12.6 प्रतिशत और मई में 10.3 प्रतिशत की गिरावट के साथ-साथ व्यापार घाटा के लगभग 1.80 लाख करोड़ रुपए यानी 2210 करोड़ डॉलर के उच्चस्तर पर पहुंचना चिंता जनक है।
प्रणतेश बाजपेयी