बदलते आर्थिक हालात कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) को रणनीतिक सुधार करने के संकेत बार-बार देते आ रहे हैं। स्वयं निर्धारित ब्याज दर पर अपने खाताधारकों को टाइमफ्रेम के अंदर धनराशि का भुगतान न कर पाना अशोभनीय तो है ही साथ में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पूरे देश की साख पर बट्टा लगता है सो अलग। पिछले साल के ब्याज भुगतान अभी तक पूरी तरह से नहीं सुलटाए जा सके।
इसके वित्तीय संसाधनों के आकलन के आधार पर बीते वर्ष के बराबर 2020-21 के लिए ब्याज दर एफोर्ड कर पाना बहुत ही मुश्किल लगता है। ईपीएफओ के साथ कुछ दिक्कतें राहु केतु की तरह चिपकी हुई हैं। बाजार की चाल से इसका तालमेल बन ही नहीं पाता। वित्तीय क्षेत्र ऐसा नाजुक है कि सोते समय ‘आल इस वेल’ है तो नींद खुलने पर ‘सूपड़ा साफ’ के समाचार कहीं का नहीं रखते। बाजार की नब्ज पर अनवरत चौकस पकड़ रखने वाला ही सिकंदर रहता है।
बीते दशकों के बही खाते खंगालिए, बाजार में प्रचलित और इसकी ब्याज दरों के बीच का अंतर आर्थिक सिद्धांत के अनुरूप नहीं रहा। देश दुनिया के वित्तीय घटनाचक्र पर निरंतर ‘बाज दृष्टि’ के बिना भरपूर कमाई कर पाना और अपने जमाकर्ताओं को अबाधित तथा स्वस्थ प्रतिफल लगातार देते रहना संभव हो ही नहीं सकता। रिकाॅर्डों से साफ पता चलता है कि ईपीएफओ ने वित्तीय वर्ष 2013-14 और 2014-15 के लिए 8.75 फीसद की दर से अपने खाताधारकों- जमाकर्ताओं को ब्याज दिया, 2015-16 में 8.8 फीसद तो दिया पर अगले साल 2016-17 के लिए इतनी ब्याज दर सस्टेन नहीं कर सका। संगठन को और 0.15 फीसद की कटौती करनी पड़ी, दर 8.65 फीसद रह गई। आगे 2017-18 में फिर 0.10 फीसद कमी कर 8.55 फीसद ब्याज से संतोष करना पड़ा जमाकर्ताओं को। 2018-19 में 0.10 फीसद बढ़ाकर 8.65 फीसद ब्याज दिया गया, 2019-20 के लिए फिर 0.15 फीसद कटौती की जानी थी, हुई।
दिक्कत यहीं नहीं खत्म हुई, लगभग 6 करोड़ में से करीब 40 लाख जमाकर्ता ब्याज भुगतान पाने को अब भी झीक रहे हैं। संगठन की वित्त निवेश और आॅडिट कमेटी, सीबीटी और वित्त मंत्रालय इन तीनों से गुजरने के बाद ही ब्याज दर तय की जाती है। ब्याज आय प्राप्त करने के लिए 2015 के मध्य तक संगठन अपनी निवेश योग्य धनराशि को सरकारी प्रतिभूतियों, बैंकों में एफडी जैसे फिक्स्ड इनकम एसेट्स में लगा देता था। देश में बहस, चर्चा का लम्बा दौर चलने के बाद अंतत: मार्च 2015 में स्टाॅक मार्केट में सीमित और खास माध्यमों में निवेश करने का नीतिगत निर्णय लिया गया, अगस्त 2015 से स्टाॅक मार्केट में निवेश करना शुरू किया गया। लेकिन ये निवेश सिर्फ विशेष प्रकार के ईटीएफ (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड) में किया जाता है।
ईपीएफ की धनराशि का निवेश अभी तक सीपीएसई बैक्ड (केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम) ईटीएफ, भारत 22 ईटीएफ में खास तौर पर और कुछ अंश निजी क्षेत्र के बाॅन्डों में लगाया जाने लगा। इस तरह के निवेश की सीमा 2015 में 5 फीसद से शुरू होकर 10 फीसद और 2017 में 15 फीसद कर दी गई। कंपनियों में सीधा इक्विटी निवेश नहीं किया जाता है। हालांकि शीर्ष स्तर पर मनाही के बावजूद आई एल ऐंड एफ एस लि. में 570 करोड़ रु. लगाने के पीछे कौन था, रहस्य बना हुआ है। आई एल ऐंड एफ एस लि. को ‘भारत का लेहमन ब्रदर्स’ कहा जाता है। 2019 सितंबर की स्थिति के अनुसार ईपीएफओ की 86966 करोड़ रु. की धनराशि ईटीएफ में लगी हुई थी, फरवरी 2020 में कुल निवेश 1.10 लाख करोड़ रु. के स्तर पर था।
बीते साल मार्च में शेयर सूचकांकों में 25-30 फीसद की गिरावट के आधार पर संगठन के निवेश के बाजार मूल्यों में 25-26000 करोड़ रु. नुकसान का आकलन लगाया गया था। इसके अलावा कोविड वर्ष 2020 के दौरान संगठन पर दोतरफा चोट हुई- खाताधारकों ने बड़े स्तर पर अपने खातों से धनराशि निकाली, दूसरे- नौकरियों के छिन जाने से संगठन को इनसे मिलने वाला योगदान (पीएफ खातों में) सिमट गया। राष्ट्र्व्यापी नेटवर्क को चुस्त चलाने में महत्वपूर्ण कारक श्रम संसाधन संगठन के पास नाकाफी हैं। अरसे से विभिन्न स्तर पर सात-आठ हजार पद रिक्त चल रहै हैं, ऐसे में कामकाज सुचारु कैसे चल सकता है? इसकी जवाबदेही किसी पर तो बनती है?
कुल करीब 16 हजार कर्मियों से गाड़ी घसीटी जा रही है, कुल स्वीकृत पदों की संख्या 24 हजार है। ऐसी स्थिति में काम तो सफर करेगा ही। जिन फर्मों (स्थापन) से संगठन को योगदान मिलना चाहिए उनमें से तमाम बीमार हो गईं, बड़ी संख्या में फर्में पूरी तरह से बंद हो गईं और कई लाख मामले अदालती कारवाई में फंसे हैं। मार्च 2018 तक के उपलब्ध आकड़ों के विश्लेषण के मुताबिक अछूट प्राप्त फर्मों पर 6293 करोड़ रु., छूट प्राप्त फर्मों पर 1022 करोड़ रु. मिलाकर 8 हजार करोड़ से अधिक बकाया राशि की वसूली नहीं हो पा रही।
पहले सीएजी ने संगठन के वित्तीय निवेश, लेखा- जोखा और पीएमपीआरपीवाई योजना के तहत प्राप्त राशि का पूरा उपय़ोग न कर पाने से लेकर आंतरिक क्रियाकलापों सहित कई महत्वपूर्ण खामियों का खुलासा किया था जिन्हें पूरी तरह से यहां पर कवर कर पाना अभी संभव नहीं है। गौर करने की बात है – संगठन का संचालनकर्ता ‘केंद्रीय न्यासी बोर्ड’ (सीबीटी) है। बोर्ड का मुखिया अर्थात अध्यक्ष केंद्रीय श्रम मंत्री होता है, साथ में केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त उपाध्यक्ष के तौर पर, केंद्र सरकार के 5 प्रतिनिधि, राज्य सरकारों के 15 प्रतिनिधि, नियोक्ताओं (एम्प्लाॅयर) के 10 प्रतिनिधि और कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने के लिए सीटू, इंटक और हिंद मजदूर सभा आदि के 10 प्रतिनिधियों के होने के बावजूद ऐसी कहानियांं क्यों ? संगठन 4 मार्च को श्रीनगर में सीबीटी की 228 वीं बैठक का आमंत्रण प्रतिनिधियों को प्रेषित कर चुका है। देखना है कि बोर्ड प्रस्तावित बैठक में 2020-21 के लिए 8.35 फीसद, 8.40 फीसद और 8.30 फीसद में से किस दर पर ब्याज देने में संगठन को सक्षम पाता है।
प्रणतेश नारायण बाजपेयी