सोमनाथ मंदिर: वैभवशाली इतिहास…… आराध्य भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में सोमनाथ मंदिर का अपना एक अलग एवं खास महत्व है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के बेरावल बंदरगाह स्थित सोमनाथ मंदिर को प्रथम ज्योतिर्लिंग की मान्यता है। ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर का वास्तुशिल्प भी खास है। प्रथम ज्योतिर्लिंग की मान्यता रखने वाले सोमनाथ मंदिर की इतिहास अति वैभवशाली रहा है। सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल एवं शीर्ष पर्यटन एरिया है।
ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर का वास्तुशिल्प अति विशिष्ट है। विशेषज्ञों की मानें तो सोमनाथ मंदिर का वास्तुशिल्प चालुक्य शैली एवं कैलाश महामेरू प्रसाद शैली पर आधारित है। इस भव्य-दिव्य मंदिर का सुन्दर वास्तुशिल्प एवं कलात्मकता गुजरात के कारीगरों के कला कौशल को बयां करती है। मंदिर के मुख्य शिखर की ऊंचाई 15 मीटर है। शीर्ष पर करीब 2.20 मीटर लम्बा-चौड़ा झण्डा स्तम्भ है। मंदिर की दक्षिण दिशा में समुद्र किनारे एक अन्य स्तम्भ है। मंदिर के पिछले हिस्से में प्राचीन मंदिर की मान्यता है। यह मंदिर मुख्यता पार्वती जी का मंदिर है। सोमनाथ मंदिर की व्यवस्था एवं संचालन ट्रस्ट के अधीन है।
ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास का अटूट केन्द्र है। यह तीर्थ पितृ श्राद्ध सहित अन्य सभी शुभ एवं मांगलिक कार्यों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है। सोमनाथ मंदिर क्षेत्र में श्राद्ध का विशेष महत्व होता है। ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर त्रिवेणी महासंगमन पर स्थित है। यह त्रिवेणी तीन नदियों हिरण नदी, कपिला नदी एवं सरस्वती नदी का विशाल संगमन स्थल है। इस त्रिवेणी में स्नान का भी विशेष महत्व माना जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर स्वयं चन्द्रदेव ने किया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद भी में है।
खास यह कि सोमनाथ मंदिर परिसर में रात 7.30 बजे से 8.30 बजे तक लाइट एण्ड साउण्ड शो संचालित होता है। लाइट एण्ड साउण्ड शो में सोमनाथ मंदिर का इतिहास सुन्दर रंग -ढंग से बयां किया जाता है। लोककथाओं की मानें तो इसी स्थान पर श्रीकृष्ण ने देहदान किया था। इस कारण इस क्षेत्र का महत्व आैर भी अधिक बढ़ जाता है। किवदंती है कि सोम अर्थात चन्द्र ने राजा दक्षप्रजापति की 27 कन्याओं से विवाह पर किया था। सोम अपनी सभी पत्नियों से समान प्रेम नहीं करते थे। सोम के इस व्यवहार से क्षुब्ध दक्षप्रजापति ने श्राप दिया था कि कांति क्षीण होगी।
लिहाजा सोम ने शिव आराधना की थी। जिस पर भगवान शिव ने इसी स्थान पर आकर श्राप का निवारण किया था। शिव का स्थापन यहां होने से इस स्थान को सोमनाथ मंदिर कहा गया। ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर का कई बार खण्डन एवं पुर्नरुद्धार हुआ। भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उत्खनन से प्राप्त ब्राह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिंग स्थापित किया। सौराष्ट्र के राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 1950 को नये सोमनाथ मंदिर की आधारशिला रखी।
इसके बाद 11 मई 1951 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने मंदिर में नव ज्योतिर्लिंग स्थापित किया था। नवीन सोमनाथ मंदिर 1962 में पूर्णनिर्मित हो सका। वर्ष 1970 में जामनगर की राजमाता ने अपने पति की स्मृति में दिग्विजय द्वार का निर्माण कराया था। मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर के दर्शन करने से कष्ट एवं दुखों से छुटकारा मिलता है। श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास के इस केन्द्र में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती रहती है।
ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर तीर्थ धाम की यात्रा के सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं। निकटतम एयरपोर्ट राजकोट, अहमदाबाद एवं बडोदरा हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन वेरावल है। इसके अलावा सड़क मार्ग से भी ज्योतिर्लिंग की यात्रा की जा सकती है।