खौलते जल वाली डोमिनिका की ब्वॉइलिंग लेक

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‘खौलता जल” किसी नदी-झील या जलाशय में अठखेलियां कर रहा हो तो निश्चय ही आश्चर्य होगा। जलधारा तो सामान्यत: ‘शीतलता” का संदेश देती है लेकिन विश्व वसुंधरा तो अपने आगोेश में रहस्य-अचरज व आश्चर्य के खजानों की लम्बी श्रंखला छिपाये है। विश्व विरासत का डोमिनिका भी एक विलक्षण एवं अद्भूत स्थल है। डोमनिका के राष्ट्रीय उद्यान में उबलते-खौलते जल की भव्य-दिव्य झील है। खास बात यह है कि मौसम के बदलते तेवर का इस झील के जल पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

डोमिनिका के मोरेन ट्रोइस पिट्नस राष्ट्रीय उद्यान में स्थित इस ‘ब्वॉइलिंग लेक” को देखने आैर इसकी आब-ओ-हवा को देखने-अनुभव करने बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। यह खौलते जल वाली झील एक बड़े दायरे में है। इस झील के उपर आम तौर पर भाप के बादल छाये रहते हैं।

झील का जल कभी शांत नहीं दिखता-रहता। झील का भूरा व नीला जल सदैव-हमेशा बुदबुदाता दिखता है। ऐसा प्रतीत होता है कि झील का जल खौल रहा हो। विशेषज्ञों की मानें तो इस विलक्षण झील को वर्ष 1870 में देखा गया। इस झील के निकट दो अंग्रेज वॉट एवं डाक्टर निकोल्स काम कर रहे थे, तभी उन्होंने इस झील की विलक्षणता को देखा। इसके बाद वर्ष 1875 में वनस्पति शास्त्री एच प्रेस्टोई व डा. निकोल्स ने इस प्राकृतिक घटना पर शोध व अध्ययन प्रारम्भ किया।

जल के तापमान को मापा गया तो पाया गया कि इस खौलती झील का जल 197 डिग्री फारेनहाईट तक पाया गया। जल के निरन्तर खौलने के कारण झील के केन्द्र बिन्दु के जल का मापन संभव नहीं हो सका। इस झील की गहराई मे काफी उतार-चढ़ाव हैं। विशेषज्ञों की दृष्टि में 1870 के दशक में विलक्षण जल वाली यह झील काफी गहरी थी लेकिन वर्ष 1880 में अचानक एक बड़ा विस्फोट हुआ आैर झील लुप्त हो गयी।

इस झील के स्थान पर गर्म जल व भाप का फव्वारा निकलने लगा। इसके लम्बे समय बाद यह स्थान एक बार फिर खौलते जल वाली भव्य-दिव्य झील में तब्दील गया। इस बार झील की गहराई कम हो गयी। अब तो हमेशा झील के जल  में एक सतत प्रवाह दिखता है। इस झील से विभिन्न प्रकार की गैस का उत्सर्जन होता है तो वहीं भाप के बादल करीब-करीब हमेशा ही दिखते हैं।

इस झील का झरनों से भी जुड़ाव है लेकिन जल कहीं भी खौलता ही मिलेगा। खौलने की पृवत्ति वाली इस जलझील में तैरना मौत को दावत देना है। इस झील तक पहंुचने के लिए कोई सीधी सड़क नहीं है बल्कि सड़क से करीब 13 किलोमीटर घूम फिर कर उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर जाना होता है। फिर भी बड़ी संख्या में पर्यटक झील की विलक्षणता को देखने-महसूस करने आते हैं।

पर्यटकों को नाश्ता व पानी खुद साथ लेकर आना-जाना होता है। इस विरानी घाटी में खतरनाक वृक्षवंश आदि की एक बड़ी व लम्बी चौड़ी श्रंखला है। डोमिनिका की इस झील व आसपास के इलाके के वायु मण्डल में सल्फर की पर्याप्त उपलब्धता है। सल्फर की गंध से इसे महसूस किया जा सकता है। उबलते जल वाली इस झील के प्रारम्भ से अंत तक करीब मोर्न निकोल्स की 3168 फुट लम्बी यात्रा करनी पड़ती है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि इस खौलते जल वाली झील के बेसिन अर्थात तल में पिघला लावा जैसा ज्वलनशील तत्व है। यह लावा गैसों का भी उत्सर्जन करता है। झील का भूरा व नीला जल खाना पकाने के लिए आसानी से उपयोग में लाया जा सकता है। इसे वीरानी की घाटी भी कहा जाता है। यह ब्वाइलिंग लेक ज्वालामुखी क्षेत्र में आती है। विशेषज्ञों की मानें तो साहसिक फिल्म निर्माता जॉर्ज कॉरआैनीस रस्सियों के सहारे इस झील को पार करने वाले पहले-प्रथम व्यक्ति बने। खौलते जल वाली यह ब्वाइलिंग लेक वैमांगु घाटी पर स्थित है।