वाराणसी में गंगा नदी पार रेत में खनन !

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वाराणसी। शहर में पिछले कई सप्ताह से गंगा उस पार रेत में जेसीबी और अन्य बड़ी ड्रेजिंग मशीन खनन करती हूई दिखाई दे रही हैं। परिणामतः उक्त कार्य से बहाव बंटा है और एक पूरी समानांतर जल धारा, नहर के रूप में बन गयी है।
गंगा घाट किनारे शैवाल (काई) की मात्रा बढ़ रही है। जल का रंग हरा हो रहा है। नदी विज्ञानी प्रो0 यू के चौधरी, महंत संकटमोचन प्रो विशम्भर नाथ मिश्रा आदि ने भी नहर निर्माण और हरे रंग की दुर्घटना पर पर्यावरणीय और अन्य संरचागत भौतिक सन्दर्भ में चिंता प्रकट की है।
उद्गम से ही तमाम स्थलों पर बाँध के द्वारा गंगा नदी को पहले से ही बाधित किया हुआ है। जिसके कारण नदी की अविरलता बुरी तरह से बाधित है। इसके साथ साथ गंगा जल परिवहन योजना के भी काम हो रहे हैं। सिर्फ बनारस में रामनगर, राजघाट, कैथी में जल परिवहन के स्टेशन आदि के काम नदी पर्यावरण और संरचना पर स्थायी प्रतिकुल प्रभाव डालने वाले हैं।
मणिकर्णिका घाट पर विश्वनाथ धाम परियोजना से लगायत खनन मलबा, जेटी सदृष ढांचा, बालू की पाईप आदि काम भी घाट संरचना, जल पर्यावरण को नुकसान पंहुचा रहे है।
उक्त के आलोक में साझा संस्कृति मंच ने जिलाधिकारी, वाराणसी को सम्बोधित ज्ञापन पत्र उनकी अनुपस्थिति में एडीएम सिटी महोदय को सौंपा है। ज्ञापन के माध्यम से मांग की गयी है की गंगा नदी में हो रहे कामो के सम्बन्ध में निम्नलिखित बिंदुओं पर स्पष्ट सुचना सार्वजनिक करते हुए यथोचित कार्यवाही करें।
1 – नदी पार नहर निर्माण और ड्रेजिंग कार्यक्रम का पूर्ण विवरण वाराणसी की अधिकृत वेबसाइट और समाचार पत्रों के माध्यम से साझा करें।
2 – उक्त नहर निर्माण कार्य पर पर्यावरणविद नदी वैज्ञानिको ने जो आशंका व्यक्त की है, उसको संज्ञान में लेते हुए पर्यावरणीय कुप्रभावों के आंकलन की रिपोर्ट सार्वजनिक करें। यदि रिपोर्ट किसी वजह से न उपलब्ध हो तो एक विशेषज्ञों की समिति बनाकर तत्काल उक्त जांच हो, और तब तक के लिए कार्य स्थगित रखा जाए।
3. नदी के पर्यावरणीय-आर्थिक सर्वे के लिए बनाए जा रहे विषेशज्ञ समिति में स्थानीय नाविक-मल्लाह बिरादरी के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाए।
4. रामनगर, राजघाट और कैथी में जल परिवहन कार्यक्रम के तहत प्रस्तावित और प्रचलित कामों के भी प्रभावों का आंकलन करती हुई रिपोर्ट सार्वजनिक करें। जलीय जीवन के व्यापक हित को देखते हुए यदि उक्त रिपोर्ट किसी वजह से नहीं बनी हो तो उसे बनवावें।
5.  मणिकर्णिका घाट पर निर्माणाधीन विश्वनाथ धाम परियोजना के विस्तार क्षेत्र में भी पर्यावरणीय कुप्रभावों के आंकलन की रिपोर्ट सार्वजनिक करें। यदि रिपोर्ट किसी वजह से न उपलब्ध हो तो एक विशेषज्ञों की समिति बनाकर तत्काल उक्त कार्यवाही हो, और तब तक के लिए कार्य स्थगित रखा जाए।
उपरोक्त आशय की मांग रखते हुए मन्च के प्रतिनिधियों ने एडीएम सिटी  को ध्यान दिलाया कि वाराणसी शहर पीने के पानी के लिए गंगा नदी और भूमिगत जल पर निर्भर है। विशेषकर घाट से लगी सघन आबादी को उपलब्ध भूमिगत जल भी गंगा की धारा पर ही निर्भर है। साथ ही पुरे शहर को पीने का पानी गंगा ही उपलब्ध कराती है। नदी की धारा पर पड़ रहे इस प्रतिकूल प्रभाव का शहर में पीने के पानी की वयवस्था पर भी क्या और कितनी प्रभाव पड़ेगा इसका समग्र आकलन भी करना जरूरी होगा।
साझा संस्कृति मंच के प्रतिनिधि मंडल ने नदी के बदलते वर्त्तमान स्वरुप को NGT के संज्ञान में लाने के प्रयास का भी स्वागत किया और इससे नदी पर मंडरा रहे खतरों पर हो रही बहस अधिक सारगर्भित और ठोस दिशा में बढ़ पाएगी ऐसी सम्भावना व्यक्त की है।
साझा संस्कृति मंच के प्रतिनिधि मंडल में प्रमुख रूप से वरिष्ठ गांधीवादी रामधीरज भाई, वल्लभाचार्य पांडेय, फादर आनंद, संजीव सिंह, जागृति राही, डॉ अनूप श्रमिक, रवि शेखर, मुकेश और धनञ्जय आदि शामिल रहे।