कोई भगत सिंह जैसा क्यों बने… !

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भारत सिर्फ जनसंख्या के आधार पर एक विशाल देश नहीं है बल्कि इसकी विशालता में वह सभी महान लोग सम्मिलित हैं जिन्होंने इसे महान बनाने में सहयोग किया है। महानता का अर्थ इस देश में वर्तमान परिस्थिति में सिर्फ यही तक सीमित रह गया है कि कौन कितना बड़ा नेता है। इसने कितने साल तक शासन किया है और उसके साथ जोड़कर एक आम आदमी के जीवन में रोटी की तलाश कैसे खत्म हो सकती है।

यदि वह धनकुबेर है तो भी वह महान है। इस देश में और यदि वह राजनेता है तो भी महानता की ओर बढ़ जाता है। यही कारण है की वर्तमान में यह बात ज्यादा सारगर्भित और सत्य प्रतीत होती है कि हर वर्ष सिर्फ 1 दिन सरकारी तिथियों के अनुसार देश में सोशल मीडिया पर या हलचल दिखाई देती है कि देश को बनाने के लिए जिन क्रांतिकारियों ने अपने खून से इस जमीन को सींचा था उनका या तो जन्मदिन होता है या बलिदान दिवस होता है। यही 23 मार्च 2021 की कहानी है।

कहने को भगत सिंह के जीवन का बलिदान दिवस है लेकिन उस बलिदान दिवस को जानकर एक आम आदमी को आज क्या प्रेरणा मिल रही है। मुख्य उद्देश्य क्या है क्योंकि इतिहास भी यह बता रहे हैं कि भगत सिंह उपेक्षा के शिकार थे। भगत सिंह के समकालीन राजनेताओं ने भगत सिंह को कभी भी संरक्षण नहीं प्रदान किया लेकिन वर्तमान में भी भगत सिंह के नाम पर तो स्टेशन का नाम नहीं है लेकिन मुंबई कल्याण के बीच में पड़ने वाला है कि स्टेशन सैंडहर्ष स्टेशन के नाम से प्रसिद्ध है या वही व्यक्ति है जिसके कारण भगत सिंह को फांसी की सजा हुई।

क्या यह वास्तव में एक क्रांतिकारी के प्रति इस देश की श्रद्धांजलि है… सम्मान है… शायद इस पर हमें विचार करना होगा। दूसरी तरफ अभी कुछ ही दिन पहले चंद्रशेखर आजाद के जीवन से जुड़ी एक तिथि आई थी लेकिन यह वही चंद शेखर आजाद है जिन्होंने अपने को स्वयं गोली मार ली इस मादरे वतन की रक्षा के लिए, लेकिन उनकी मां को आतंकवादी की मां कहकर अपमानित किया गया।

झांसी में उनकी प्रतिमा को लगने नहीं दिया गया। उनके नाम पर चल रहे प्याऊ को तोड़ डाला गया क्या क्रांतिकारियों के हिस्से में बस यही सब था और यदि यह वास्तविकता है तो फिर कोई व्यक्ति वर्तमान में इस देश में मां भारती के लिए क्रांति का बिगुल क्यों भेजा है… इससे अच्छा है कि वह व्यक्ति किसी नेता की चाटुकारिता करके और स्वयं नेताओं की श्रेणी में खड़ा होकर देश को दिशा देने लगे। कम से कम उसकी नियति भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे नहीं होगी। उनके घर वालों की नियत ऐसी नहीं होगी।

आज इसी बात पर चिंतन करने की आवश्यकता है। उस चिता के सामने जो धू-धू करके भगत सिंह की कहानी जलते हुए बता रही है और उस हर क्रांतिकारी की कहानी बता रही है। इसके हिस्से में अपमान.. गरीबी.. उपेक्षा.. गुमनामी आया है। शायद यही कारण है कि आप किसी के घर में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद पैदा नहीं होना चाहते.. शायद यही भगत सिंह की श्रद्धांजलि पर हर भारतीय के अंतस में एक प्रश्न भरना चाहिए।

डॉ आलोक चांटिया