सनातन की धर्म ध्वजा ऊंची करेगा महाकुंभ

सनातन की धर्म ध्वजा ऊंची करेगा महाकुंभ प्रयागराज में कल से होगा इस महा जुटान का शुभारंभ 27 जनवरी को बृहद धर्म संसद का भी होगा आयोजन विश्व भर से करीब 50 करोड़ लोगों के शामिल होने की उम्मीद योगी कैबिनेट बैठक और विधानसभा सत्र का भी होगा आयोजन महाकुंभ का सफल आयोजन हमारे लिए गौरव की बात-योगी

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लखनऊ। विश्व के सबसे बड़े धार्मिक जुटान के लिए प्रयागराज के महाकुंभ नगर में तैयारियां लगभग पूरी हो गई हैं। धर्म नगरी प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी तक 45 दिनों के लिए पवित्र महाकुंभ मेले का आयोजन होने जा रहा है। इस बार का महाकुंभ सनातन धर्म की अलख को और बढ़ाने का साधन भी होगा। 27 जनवरी को यहां वृहद धर्म संसद का आयोजन होगा जिसमें सनातन धर्म बोर्ड बनाने की मांग उठाई जाएगी। यहां इस महाकुंभ का आयोजन 12 वर्षों के बाद होगा। इसके पहले महाकुंभ महाकाल की नगरी उज्जैन में हुआ था।

हालांकि इस आयोजन को बिगाड़ने की कोशिश की गई किन्तु योगी सरकार ने सारी बाधाओं को हटाया। कभी कुंभ की 55 एकड़ जमीन को वक्फ की सम्पत्ति बता कर, कभी खालिस्तानियों से धमकी दिलवा कर तो कभी संगम के जल को खराब बताकर पैनिक पैदा करने की कोशिश की गई। किंतु योगी आदित्यनाथ की सरकार के दृढ़ निश्चय ने सारी बाधाओं को पार कर लिया। महाकुंभ के इस मेले में देश-विदेश से करीब 50 करोड़ लोगों के आने का अनुमान है। सरकारी सूत्रों के अनुसार महाकुंभ के दौरान ही यहां योगी कैबिनेट की बैठक और विधानसभा के विशेष सत्र का आयोजन भी किया जाएगा।

गोरक्ष पीठाधीश्वर और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि महाकुंभ का आयोजन सनातन की संपूर्ण विरासत को संजोने का एक प्रयास है। इसका सफल आयोजन हमारे लिए गौरव की बात होगी। उन्होंने कहा कि मैं हमेशा जनता की चिंता करता हूं, अपनी नहीं। कुंभ के बाद की चुनौतियों पर योगी का कहना है कि मेरे लिए एकमात्र चुनौती जनता की सेवा करना है। इसके अलावा और कोई चुनौती नहीं है। जब भी जो भी चुनौती सामने आएगी उसका सामना किया जाएगा। योगी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी, प्रयागराज और अयोध्या को इतना समृद्ध कर दिया है कि ये विकास का मानक हो गये हैं। मेले के लिए प्रयागराज में जितना विकास कार्य हुआ है वह आगे भी प्रयागराज की जनता के ही काम आने वाला है।

उधर कथावाचक देवकी नंदन ठाकुर के अनुसार इस महाकुंभ के दौरान 27 जनवरी को बृहद धर्म संसद का आयोजन किया जाएगा। इस धर्म संसद में सनातन बोर्ड की स्थापना की मांग समेत देश के उन तमाम मंदिरों को छुड़ाने पर भी चर्चा होगी जो आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए और उन पर मस्जिदों का निर्माण कराया गया। धर्म संसद में इसकी विधिवत रूपरेखा बनाई जाएगी। इसमें संभल के हरिहर मंदिर समेत वहां के अन्य धार्मिक स्थलों के भी पुनरोद्धार पर चर्चा होगी।

हालांकि मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने पिछले दिनों यह दावा करके हड़कंप मचा दिया था कि कुंभ के आयोजन स्थल की लगभग 55 एकड़ जमीन वक्फ की है। इसके बाद शुरू हुआ आरोप और प्रत्यारोप का सिलसिला। मौलाना शहाबुद्दीन रजवी का बयान आने के बाद शिया फिरके के मौलाना सैफ अब्बास और यासूब अब्बास ने इस दावे पर सख्त एतराज जताया। उन्होंने कहा कि यह ग़लत है। और यदि ऐसा है भी तो उन्हें अपने दावे को साबित भी करना चाहिए। इस तरह के सनसनीखेज दावे करके माहौल खराब करना इंसानियत के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि अगर मान भी लिया जाए कि वे जो कह रहे हैं, सही भी है तो महाकुंभ के बाद तो जमीन खाली ही हो जाएगी। हिंदू समाज ज़मीन उठाकर ले थोड़ा ही जाएगा। अभी इस तरह के बयानों से बचना चाहिए।

उधर मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी के बयान पर सवाल किए जाने पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि जब फोड़ा बढ़ जाए तो कैंसर बनने के पहले उसकी सर्जरी कर देना ही उचित है। ऐसे में हम भी वक्फ बोर्ड में गलत तरीके से ली गई एक-एक इंच जमीन का कागज निकलवाएंगे और अगर गलत तरीके से जमीनें ली गई होंगी तो उन्हें वापस लेंगे। और उस पर अस्पताल, स्कूल और अन्य जनहित के निर्माण किए जाएंगे। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह वक्फ बोर्ड नहीं वल्कि भू माफिया बोर्ड बन गया है। हम राजस्व रिकॉर्ड की जांच करवा कर भूत काल में भी की गई ग़लती भी सुधारेंगे।

योगी ने कहा कि कुंभ की जमीन पर वक्फ के नाम पर दावेदारी करने वाले पहले अपनी खाल बचा लें। वे उसके बाद कोई दावा करें। उधर मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी का बयान आने के बाद विहिप ने उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है। हालांकि मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने बाद में यह बयान देकर मामले पर पर्दा डालने की कोशिश की है कि उनका यह दावा उनकी अपनी जानकारी नहीं बल्कि सुनी सुनाई बात पर आधारित है। मौलाना रजवी के दावे पर यूपी के कैबिनेट मंत्री सुनील शर्मा ने भी कड़ा एतराज जताया है। उन्होंने कहा कि इस तरह की बातें ही माहौल खराब करती हैं। इसके अलावा उन्होंने सपा नेता अखिलेश यादव के महाकुंभ में खराब पानी और अव्यवस्था वाले सवाल पर भी करारा पलटवार किया है। उन्होंने कहा कि उन्हें पहले अपने कार्यकाल में हुई गड़बड़ियों पर विचार करना चाहिए। फिर इस भव्य आयोजन पर उंगली उठानी चाहिए।

इसके अलावा पिछले दिनों यह भी खबर आई कि खालिस्तान समर्थकों ने महाकुंभ में अव्यवस्था फैलाने और जान माल की धमकी दी है। इसके बाद मेले की सुरक्षा और कड़ी कर दी गई है। सरकार की ओर से लोगों को आश्वस्त किया गया है कि चिंता की कोई बात नहीं है, सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम हैं। वैसे भी पूरे मेला क्षेत्र की ड्रोन से निगरानी की जा रही है। इस बार तो सुरक्षा को लेकर योगी सरकार इतनी गंभीर है कि उसने मेले के लिए एसएसपी के अलावा एक डीआईजी की भी तैनाती कर रखी है। ताकि सुरक्षा व्यवस्था की मानीटरिंग प्रापर तरीके से होती रहे।

सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व भौतिक यात्रा का है मौका : परंपरा के अनुसार कुंभ में आने वाले श्रद्धालु न केवल आध्यात्मिक अनुष्ठानों की श्रृंखला में शामिल होंगे, बल्कि ऐसी यात्रा पर भी निकलेंगे जो भौतिक, सांस्कृतिक व आध्यात्मिक सीमाओं से परे है। इसमें जाति, पंथ या लिंग का भेदभाव दूर कर लाखों लोग शामिल होते हैं। यहां आने वालों में प्रमुख रूप से अखाड़ों, आश्रमों और धार्मिक संगठनों के लोग होते हैं। या फिर वे लोग जो भिक्षा पर निर्भर रहते हैं। महाकुंभ एक केंद्रीय आध्यात्मिक भूमिका निभाता है, जो आम भारतीयों पर एक जादुई प्रभाव डालता है। यह घटना खगोल विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्मिकता, कर्मकांड की परंपराओं, और सामाजिक, सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और ज्ञान को अत्यंत समृद्ध बनाती है। महाकुंभ मेला अनुष्ठानों का जीवंत मिश्रण है।

माना जाता है कि पवित्र जल में डुबकी लगाने से पापों से मुक्ति मिलती है। स्वयं और पूर्वजों दोनों को पुनर्जन्म से मुक्ति मिलती है। इस दौरान तीर्थयात्री नदी के किनारे पूजा करते हैं और प्रवचनों में भाग लेते हैं। महाकुंभ के दौरान वैसे तो किसी भी समय स्नान किया जाता है, लेकिन पौष पूर्णिमा से शुरू होने वाली कुछ तिथियां विशेष रूप से शुभ होती हैं। इन तिथियों पर विशेष खगोलीय ऊर्जा का अनुभव किया जा सकता है। इन दिनों में संतों और विभिन्न अखाड़ों के सदस्यों का शानदार जुलूस निकलता है। वे अमृत स्नान नामक अनुष्ठान में भाग लेते हैं, जिसे ’राजयोगी स्नान’ भी कहा जाता है। यह महाकुंभ मेले की शुरुआत का प्रतीक है।

ऐसे में प्रयागराज में संगम का तट पुनः ऊर्जा प्राप्ति की प्रतीक्षा में है। 12 वर्ष बाद फिर पृथ्वी, पवन, पानी, आकाश, वायु और अग्नि अपनी अपनी गति से रचना और विलय की यात्रा कर रहे हैं। माना जाता है कि जो निर्मिति है, उसका शोधन होना है। इसी निर्मिति में समस्त चराचर जगत है। इस निर्मिति का एक लय है, आधार है, अध्यात्म है, दर्शन है। इसे ही सनातन धर्म मनीषा महाविज्ञान की संज्ञा देता है। यह अद्भुत है, अद्वितीय है। विश्व की किसी सभ्यता के पास इसको समझने की सामर्थ्य नहीं। कुंभ मानवता का सबसे बड़ा अध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम है। यूनेस्को ने महाकुंभ के आयोजन को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की संज्ञा दी है। दुनिया के 71 देशों के राजदूतों ने इस आयोजन में उपस्थित होकर अपने अपने देशों के राष्ट्र ध्वज को यहां स्थापित किया है। और इसे वैश्विक मान्यता दी है।

एक माह कल्पवास : कल्पवास न केवल एक कठिन व्रत है, बल्कि यह एक जीवनदायिनी साधना भी है। यह व्रत जीवन के उद्देश्य को समझने और उसे आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाने का अवसर प्रदान करता है। मान्यता है कि महाकुंभ में कल्पवास करने वालों के मोक्ष का द्वार खुल जाता है। 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ संगम की रेती पर हमेशा की तरह लाखों भक्त कल्पवास का संकल्प लेकर एक महीने तक यहां रहेंगे। और यह एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव होता है। इस बार कल्पवासी भक्त पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक 30 दिन का साधना काल बिताएंगे। यानी कल्पवास 13 जनवरी से 12 फरवरी तक रहेगा। इस दौरान उनकी दिनचर्या अनुशासित और संयमित होती है। कल्पवासी रोज सूरज उगने से पहले गंगा में स्नान कर दिन की शुरुआत करते हैं और बाकी दिन पूजा-पाठ, सत्संग और कथा में बिताते हैं।

कुंभ स्नान रवि योग में : इस बार महाकुंभ मेले पर रवि योग का निर्माण होने जा रहा है। इस दिन इस योग का निर्माण सुबह 7 बजकर 15 मिनट से होगा और सुबह 10 बजकर 38 मिनट पर समापन होगा। इस दिन भद्रावास योग भी है। इसमें भगवान विष्णु की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। ज्योतिषियों का कहना है कि महाकुंभ मेले की तिथि ग्रहों-,राशियों के अनुसार तय होती है। कुंभ की तिथि निर्धारित करने के लिए सूर्य और बृहस्पति को महत्वपूर्ण माना जाता है। ग्रहों की स्थिति के आधार पर ही कुंभ का स्थान भी चुना जाता है। पौष पूर्णिमा से महाकुंभ की शुरुआत हो रही है। इसका समापन महा शिवरात्रि पर होगा।

महाकुंभ आयोजन का समुद्र मंथन से है नाता : पौराणिक कथाओं के अनुसार कुंभ का आयोजन समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। तब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर अमृत के लिए समुद्र मंथन किया था। सबसे पहले विष निकला था, जिसे भगवान शिव ने ग्रहण किया। सबसे आखिर में अमृत निकला तो देवताओं ने ग्रहण किया था। काल भेद के कारण देवताओं के 12 दिन मनुष्य के 12 वर्षों के समान हैं। इसलिए महापर्व कुंभ हर स्थान पर 12 साल बाद लगता है। समुद्र मंथन के दौरान देवता और राक्षसों के बीच अमृत के घड़े के लिए 12 दिनों तक लड़ाई भी चली थी। पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच 12 सालों तक चले संग्राम में 12 स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं। इसमें आठ जगह देवलोक के थे और चार पृथ्वी लोक के थे। जिन स्थानों में पृथ्वी पर अमृत गिरा वे प्रयागराज, हरद्बार, उज्जैन और नासिक थे। इन्हीं चार जगहों पर महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।

इस दौरान इन जगहों पर बह रही पवित्र नदियों के जल में उस विशेष उर्ज़ा को महसूस किया जा सकता है। कुछ विशेष नियमों का विधि-विधान पूर्वक पालन करने से आकाश में उपस्थित ग्रहों की उर्ज़ा मानव का कल्याण करती है। प्रयागराज में कुंभ का आयोजन वृष राशि में देवगुरु बृहस्पति का संचार, मकर राशि में सूर्य की स्थिति और अमावस्या के दिन चन्द्रमा का मकर राशि में सूर्य से मिलन है। प्रयाग में इससे पूर्व वर्ष 2013 में महाकुम्भ का आयोजन किया गया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अमृत कलश की रक्षा के समय जिन राशियों पर जो ग्रह संचरण कर रहे थे, कलश की रक्षा करने वाले वही चन्द्र, सूर्य, गुरु आदि ग्रह जब उसी अवस्था में संचरण करते हैं तब महाकुम्भ पर्व का योग बनता है।

पौराणिक अक्षय वट भी है आस्था का प्रमुख केन्द्र : पवित्र संगम किनारे हजारों साल से अक्षय वट विराजमान है। ये वहीं अक्षय वट है, जिसकी गिनती द्बादश माधव के रुप में होती है। कहते हैं सृष्टि रचना से पहले परम पिता ब्रह्माजी ने यहां यज्ञ किया था। इस यज्ञ से ही सृष्टि की रचना हुई। ब्रह्माजी ने जब प्रयाग में यज्ञ किया था तब भी अक्षय वट यहां मौजूद था। एक कथा के अनुसार जब राजा दशरथ की मृत्यु के बाद पिंड दान की प्रक्रिया आई तो भगवान राम पिंड दान का सामान इकट्ठा करने चले गए। उस वक्त वहां सीता जी अकेली बैठी थीं। तभी वहां दशरथ जी प्रकट हुए और बोले कि बहुत भूख लगी है, जल्दी से पिडदान करो। उस वक्त मां सीता को कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने अक्षय वट के नीचे बालू का पिड बनाकर राजा दशरथ के लिए दान किया।

उस दौरान उन्होंने ब्राह्मण, तुलसी, गौ, फाल्गुनी नदी और अक्षय वट को पिडदान से संबंधित दान दक्षिणा दी। और जब राम जी पहुंचे तो सीता ने कहा कि पिंड दान हो गया। पर दोबारा दक्षिणा पाने की लालच में नदी ने झूठ बोल दिया कि पिड दान नहीं किया है। लेकिन अक्षय वट ने झूठ नहीं बोला और रामचंद्र को दान में मिली मुद्रा रूपी दक्षिणा भी दिखाई। इस पर सीता जी ने प्रसन्न होकर अक्षय वट को आशीर्वाद दिया और कहा कि संगम स्नान करने के बाद जो कोई अक्षय वट का पूजन और दर्शन करेगा उसी को संगम स्नान का फल मिलेगा। लेकिन यह अक्षय वट पिछले 450 सालों से किले में कैद रहा। इसके चलते लोग अक्षय वट और सरस्वती कूप का दर्शन नहीं कर पाते थे। अब मोदी-योगी के चलते श्रद्धालु कुंभ के बाद इसका भी दर्शन कर पायेंगे।

प्रयाग महात्म्य, पद्म व स्कंद पुराण में भी अक्षयवट के दर्शन को मोक्ष का माध्यम बताया गया है। ये भगवान विष्णु का साक्षात विग्रह माना जाता है। यही कारण है कि सनातन धर्म में यह सबसे पवित्र व पूज्यनीय वृक्ष है। इसके दर्शन मात्र से ही मानव को अक्षय पुण्य मिलता है। वर्तमान समय में अकबर के किले में स्थित इस वट वृक्ष की पूजा-अर्चना करना यहां आने वाले तीर्थ यात्री नहीं भूलते हैं। इस वृक्ष को माता सीता ने यह भी आशीर्वाद दिया था कि प्रलय काल में जब धरती जलमग्न हो जाएगी और सब कुछ नष्ट हो जाएगा, तब भी यह हरा-भरा रहेगा। मान्यता यह भी है कि बालरूप में भगवान श्रीकृष्ण इसी वट वृक्ष पर विराजमान हुए थे।

इसके अलावा बाल मुकुंद रूप धारण करके श्रीहरि भी इसके पत्ते पर शयन करते हैं। पद्म पुराण में अक्षयवट को तीर्थराज प्रयाग का छत्र कहा गया है। कहते हैं इस पेड़ पर चढ़कर लोग मोक्ष की कामना और पाप से मुक्ति के लिए यमुना नदी में कूद कर जान दे देते थे। बाद में इस परंपरा पर अकबर ने रोक लगा दी थी। और इसके बाद यह किला बंद कर दिया गया। अंग्रेजों के बाद यह किला सेना के नियंत्रण में आ गया है। पर महाकुंभ के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किले को खोलवा दिया है। श्री मद भागवत महापुराण में मार्कडेंय मुनि की एक कथा का भी प्रसंग है कि वे तपोबल से परमात्मा में इतने लीन थे कि ईश्वरीय माया उन्हें छू भी नही पाई। भगवान ने दर्शन देकर कुछ मागंने को कहा तो उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए। वे केवल एक बार भगवान की माया का प्रभाव देखना चाहते हैं।

कुछ समय बाद एक शाम उन्होंने देखा कि आँँधी, तूफान के साथ वर्षा से पूरी पृथ्वी जलमग्न हो गई, वे घबरा गए। चारों ओर सब कुछ डूब चुका था, जल के बीच एकमात्र यह अक्षय वट ही शेष था। उसी के सहारे वे रुके रहे। इस प्रकार उन्होंने सृष्टि के सृजन और प्रलय का पूरा चक्र देखा। उन्होंने फिर देखा कि अक्षय वट के पत्ते पर एक नन्हा सुंदर बालक लेटा हुआ है और अपने पैर के अंगूठे को मुख मे लिए हुए है। मार्कंडेय मुनि उस नारायण भगवान के रुप को देखकर मुग्ध व कृतार्थ हुए। इसमे मार्कन्डेय जी ने एक कल्प के समय का अनुभव किया।

पौराणिक सरस्वती कूप का भी है बड़ा महत्व : ऐसा कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मा जी सरस्वती जी पर मोहित हो गए थे तो सरस्वती धरती में समा गई थीं। इसके बाद प्रयागराज के नगर देवता भगवान वेणीमाधव ने मां सरस्वती की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर ही मां सरस्वती ने इस कूप से निकलकर वेणी माधव को दर्शन दिए। बाद में वेणी माधव ने मां सरस्वती से प्रार्थना की कि गंगा और यमुना नदियां श्रद्धा और भक्ति के रूप में विद्यमान हैं। आप भी यहां पर ज्ञान की देवी के रुप में सदा के लिए विराजमान हों। ऐसे में अक्षय वट की तरह किले में बंद सरस्वती कूप के दर्शन का भी महत्व है। सरस्वती कूप पृथ्वी का सबसे पवित्रतम् कूप है। मान्यता है कि संगम में जो अदृश्य सरस्वती हैं उनका वास इसी कूप में है। मत्स्य पुराण में भी सरस्वती कूप की महिमा बखानी गई है। जैसे गंगा जी गंगोत्री और यमुना जी यमुनोत्री से निकली हैं। इसी प्रकार उत्तराखंड के बद्रीनाथ के पास माणा गांव के ऊपर पवर्तीय क्षेत्र से सरस्वती नदी निकली हैं। पांडव इसी नदी को पार कर स्वर्गलोक की सीढी चढ़ने गए थे।प्राचीन काल में सरस्वती प्रयाग आती थीं, लेकिन सदियों पहले लुप्त हो गईं। मान्यता है कि यमुना तट पर बने कुओं में आज भी उनका जल है। सरस्वती कूप का दर्शन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

महाकुंभ में की गई सरकारी व्यवस्थाएं : महाकुंभ मेले के दौरान नैनी के अरैल तट पर, झूंसी व परेड ग्राउंड में टेंट सिटी बसाई गई है। यहां पर्यटकों के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं वाले स्विस कॉटेज बने हैं। इस बार पर्यटन विभाग ने नैनी के अरैल में जमीन से 18 फीट ऊपर डोम सिटी तैयार की है। डोम सिटी में 200 लोगों के रहने समेत कई आधुनिक सुविधाएं होंगी। महाकुंभ आस्था का केंद्र तो है ही यह आकर्षण का भी केंद्र होता है। नागा, अघोरी, साधू-संतों को लोग करीब से देखने आते ही हैं।

देश के चर्चित कलाकार भी महाकुंभ पर अपनी प्रस्तुति देंगे। इस बार महाभारत शो के साथ ही विभिन्न राम लीलाओं का भी आयोजन होगा। इनके लिए देश के दिग्गज और नामचीन सितारे महाकुम्भ मेला में पहुंचेंगे। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग द्बारा इसका आयोजन किया जाएगा। जानकारी के अनुसार फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा 25 जनवरी को गंगा पंडाल में हमारे राम की प्रस्तुति देंगे। 26 जनवरी को सांसद हेमा मालिनी गंगा अवतरण नृत्य नाटिका पर परफॉर्मेंस देंगी। 8 फरवरी को भोजपुरी और बॉलीवुड एक्टर व गोरखपुर के सांसद रवि किशन शिव तांडव की प्रस्तुति देंगे। 21 फरवरी को पुनीत इस्सर महाभारत का मंचन करेंगे। उत्तर प्रदेश में कई धार्मिक आयोजनों के दौरान हेलिकॉप्टर से श्रद्धालुओं, साधु और संतों पर पुष्प वर्षा की जाती रही है। इसी परंपरा का महाकुंभ 2025 में भी निर्वहन होगा।

प्रयागराज महाकुंभ की होगी डिजिटल सुरक्षा
* 2,750 एआई सीसीटीवी संदिग्ध गतिविधियों पर रख रहे नजर
* महाकुम्भ की सुरक्षा को बनाए गए 123 वॉच टावर, स्नाइपर तैनात
* 51 हजार पुलिस कर्मियों में डाला महाकुम्भ में डेरा, चप्पे-चप्पे पर नजर
* महाकुम्भ क्षेत्र में खुले 50 फायर स्टेशन और 20 फायर पोस्ट भी बनाए गए
* महाकुम्भ में वीआईपी घाट और धार्मिक स्थलों की बढ़ाई गई सुरक्षा
* एनएसजी, एटीएस, एसटीएफ और अन्य सुरक्षा एजेंसियां भी चौकसी बरत रहीं
* हर वॉच टावर पर अत्याधुनिक हथियारों और उपकरणों से लैस सुरक्षाकर्मी मौजूद
* अखाड़ा, बड़े हनुमान मंदिर, परेड, वीआईपी घाट जैसे संवेदन शील स्थानों पर विशेष टावर
– 3 जल पुलिस स्टेशन और 18 जल पुलिस कंट्रोल रूम भी तैनात किए गए
– 4,300 फायर हाइड्रेंट किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए रहेंगे तैयार

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक