हिंदुस्तान के इस हिल स्टेशन पर आनंद ही आनंद, बस मस्ती ही मस्ती

पहाड़ों की रानी कहीं जाने वाली शिमला का अचानक ही कार्यक्रम बन गया। दरअसल जम्मू-कश्मीर घूमने की तैयारी थी, टिकट भी बन गये थे लेकिन कुछ दिक्कतें आ जाने से यह प्रोग्राम कैंसिल हो गया। शिमला में माल रोड के साइड में स्थित रिज मैदान हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र है। वहीं माल रोड का अपना अलग ही आकर्षण है। यहां से जल्दी लौटने का मन नहीं करेगा। लेकिन इसके आसपास का पूरा एरिया घूमना हो तो आपके पैर मजबूत होने चाहिए। शिमला क्रिकेट एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष और पुराने दोस्त डाॅक्टर प्रिंस से मुलाकात ने मन और प्रसन्न कर दिया। यहां के क्रिकेट पर भी कुछ चर्चा हुई।

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पहाड़ों की रानी कहीं जाने वाली शिमला का अचानक ही कार्यक्रम बन गया। दरअसल जम्मू-कश्मीर घूमने की तैयारी थी, टिकट भी बन गये थे लेकिन कुछ दिक्कतें आ जाने से यह प्रोग्राम कैंसिल हो गया। शिमला में माल रोड के साइड में स्थित रिज मैदान हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र है। वहीं माल रोड का अपना अलग ही आकर्षण है। यहां से जल्दी लौटने का मन नहीं करेगा। लेकिन इसके आसपास का पूरा एरिया घूमना हो तो आपके पैर मजबूत होने चाहिए। शिमला क्रिकेट एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष और पुराने दोस्त डाॅक्टर प्रिंस से मुलाकात ने मन और प्रसन्न कर दिया। यहां के क्रिकेट पर भी कुछ चर्चा हुई।

हम शिमला से लगभग बीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित बेहद खूबसूरत और एडवेंचर स्पोर्ट्स एक्टिविटीज के लिए पहचान रखने वाले टूरिस्ट प्लेस कुफरी पहुंच गए हैं। यहां मौसम अपने यहां के गुलाबी जाड़ों जैसा था। यहां जनवरी-फरवरी में पहाड़ बर्फ से ढके रहते हैं। हम पति-पत्नी और बेटे लक्ष्य फन वर्ल्ड के लिए तीन घोड़े लेकर ऊपर के लिए निकल पड़े। यहीं दुनिया का सबसे ऊंचा गो कार्ट भी है। सेव के बागों में अभी छोटे-छोटे फल लगे हैं, यह सितंबर तक पूरा आकार ले लेते हैं। ऊपर खाने को मैगी, मोमोज ज्यादा दिखा। पत्नी और बेटे का तो काम चल गया लेकिन परहेजी खाना खाने की वजह से मैंने थोड़े मिक्स ड्राई फ्रूट्स जेब में डाल लिए। हां ड्राई फ्रूट्स यहां अपनी तरफ से काफी सस्ता है।

कुफरी में मजा आया और लगभग पांच घंटे बिताने के बाद वापसी की राह पकड़ी। दरअसल ऊपर काफी चढ़ना उतरना पड़ता है, इसलिए हम तीनों थक भी काफी चुके थे इसलिए हिमालयन नेचर पार्क नहीं देख सके। कुफरी से थोड़ा जल्दी नीचे उतर आए तो हमारे कैब ड्राइवर अक्षय ने सुझाव दिया कि अभी चैल के लिए निकला जा सकता है। हमने हामी भर दी तो गाड़ी दौड़ पड़ी इस अगले दर्शनीय स्थल के लिए। चैल शिमला से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर है। मुझे पता था कि विश्व का सबसे ऊंचाई पर स्थित क्रिकेट मैदान चैल में ही है इसलिए उसे देखने की उत्सुकता ने कुफरी की थकान को कम कर दिया था। इधर आसमान में घुमड़ते हल्के काले बादल अपनी अलग ही योजना बनाए हुए थे। चैल पहुंचने पर जब पता चला कि यहां के क्रिकेट मैदान पर जाने की अब इजाजत नहीं है तो दिल ही टूट गया। खैर हमने चैल पैलेस देखने का फैसला किया। चैल पैलेस पटियाला के राजा भूपेंद्र सिंह ने अपने लिए 1891 में गर्मी में यहां रहने को बनाया था। फिलहाल यह हिमाचल प्रदेश टूरिज्म डिपार्टमेंट की देखरेख में है। इसमें इन्ट्री के लिए 200 सौ रुपए प्रति व्यक्ति टिकट लेना पड़ता है। अब इसे होटल या होम स्टे की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है। यदि आप प्रकृति की गोद में कुछ दिन बिताना चाहें तो यहां रह भी सकते हैं लेकिन इसके लिए आपको किसी फाइव स्टार होटल जितनी कीमत चुकानी पड़ेगी। हमारी गाड़ी जैसे ही गेट के अन्दर घुसी झमाझम बारिश शुरू हो गई। हम लोग गाड़ी से उतर कर पैलेस के अन्दर दाखिल हो गए। पैलेस वाकई शानदार है। चीड़ और देवदार के पेड़ों से घिरे पैलेस की भव्यता देखते ही बनती है। पैलेस में बिलियर्ड्स रूम भी है। कुफरी जहां भीड़भाड़ वाली जगह है, तो वहीं चैल शांत और सुकून पसंद लोगों के लिए सबसे पसंदीदा स्थान है। बारिश के साथ ही बादल का एक टुकड़ा भी पैलेस से होकर गुजरता नजर आया तो हम मैदान वालों की तो जैसे लाटरी ही लग गई। थोड़ी सुरसुरी भी होने लगी थी। मौसम इतना खूबसूरत हो चला था कि यहां से जाने की इच्छा ही नहीं हो रही थी।

शाम के चार बज चुके थे, बेटे को भूख लगने लगी थी। पैलेस घूमते समय उसके भीतर ही बने रेस्तरां पर नजर पड़ी। हम पेट पूजा के लिए अन्दर गए तो पता चला कि नार्थ इंडियन्स फूड चार बजे तक ही मिलता है। लिहाजा मां-बेटे ने नूडल्स से ही काम चला लिया। पैलेस के शानदार गार्डन में कुछ यादें कैमरे में कैद करने के बाद हम चल दिए पास ही स्थित एक शिव मंदिर के लिए। ऊंचाई पर विराजमान महादेव के दर्शन करके हम शिमला लौट आए।

शिमला से विदा लेकर हमारा परिवार सुबह आठ बजे ही कुल्लू मनाली के लिए निकल पड़ा। टैक्सी टूर पैकेज का हिस्सा थी इसलिए बेफिक्री से घुमाई हो रही थी। टैक्सी मालिक अक्षय खुद ही ड्राइव कर रहे थे। एक सैनिक पुत्र अक्षय सिर्फ 25 साल की उम्र में ही पांच गाड़ियों के मालिक बन चुके हैं। अक्षय अपने काम में निपुण हैं और जल्दी ही पता कर लेते हैं कि कस्टमर किस मिजाज का है। उसी के हिसाब से वह उसको रेस्तरां और शाॅपिंग के लिए सुझाव देते हैं।‌ अगर आप कुल्लू मनाली के रास्ते से निकल रहे हैं तो मंडी में स्थित पंडोह डैम के आकर्षक नजारों को देखने के लिए रुके बिना नहीं रह सकते। यहां से शोर मचाती व्यास नदी गुजरती है। 1977 में बने इस डैम का निर्माण पानी से बिजली उत्पादन के लिए किया गया था। रास्ते में टनल भी थीं।

आगे बढ़ने पर हमें पेड़ों पर लदी लीची दिखीं। यहीं नजदीक पर एक अन्नपूर्णा ढाबे पर लंच लेकर हम कुल्लू के लिए बढ़ लिए। कुल्लू में भी मां वैष्णो देवी का एक मंदिर है। मां के दर्शन करने के बाद मंदिर के सामने ही बैठकर राफ्टिंग का नजारा लिया। थोड़ी देर नदी पर समय बिताने के बाद हम मनाली निकल पड़े। मनाली पहुंचते शाम सात बज चुका था। सुबह से गाड़ी में बैठे-बैठे पैर और कमर दुखने लगी थी। अगला दिन मनाली के लोकल सीन देखने के लिए रखा। हम लोग इतने थके थे कि रात साढ़े नौ बजे डिनर करने के बाद जो सोये तो सुबह सात बजे ही आंख खुली।

मनाली के लोकल फेमस स्पाॅट ही देखने थे इसलिए सुबह आराम से सोकर उठे। ब्रेकफास्ट लेने के बाद दस बजे हम घूमने निकले। सबसे पहले हिडिंबा देवी के मंदिर में प्रसाद चढ़ाया। मंदिर से थोड़ा ऊपर पहुंचे तो देवदार के पेड़ों का खूबसूरत नजारा देखने को मिला, इस जगह का इन्ट्री टिकट सिर्फ दस रुपए था। लोकल लोगों ने बताया कि इस जगह कई फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है। यहां थोड़ा समय गुजारने के बाद हम वन और नौका विहार स्थल पहुंचे। यहां भी टिकट सिस्टम था। 50 रुपए प्रति व्यक्ति इन्ट्री के लिए और फिर नौका विहार का अलग चार्ज था। नौका विहार के लिए मूड नहीं बना। यहां डेढ़ दो घंटे गुजर गए।

पास ही में मनाली का माल रोड था। जो कि शिमला की तुलना में काफी छोटा है। लेकिन यहां भीड़ काफी रहती है। माल रोड पूरा घूमने के साथ ही हल्की खरीद फरोख्त भी की। अब भूख भी लगने लगी थी। रेस्तरां में खाने के रेट काफी ज्यादा हैं लेकिन सैलानियों से सभी रेस्टोरेंट भरे पड़े थे। लंच लेने के बाद हम होटल लौट आए। आप समर या विंटर सीजन में पहाड़ों पर जा रहे हैं तो इस बार प्लानिंग थोड़ी बदल कर देखें। टाइम भी बचेगा और घूमने के लिए नये स्पाॅट भी एक्सप्लोर कर सकेंगे। शार्ट टूर पर हैं तो शिमला में एक रात कम करके कुफरी या चैल में भी एक रात गुजारें। इसी तरह रोहतांग पास से कुछ पहले भी एक रात रुकें, इससे बार-बार शिमला या मनाली लौटने में समय की बर्बादी नहीं होगी। हमने पांच रात और छह दिन का टूर पैकेज लिया था। इसमें दो रात शिमला और तीन रात मनाली का स्टे था, जबकि ठीक से घूमने के लिए आठ रात और नौ दिन का पैकेज लेना चाहिए था। मेरे दिल्ली के मित्र सौरभ अग्रवाल जो मनाली को अपना दूसरा घर मानते हैं, ने मुझे शिमला में रिज मैदान, माल रोड, इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज, जहां शिमला पैक्ट साइन हुआ था, देखने को कहा था। बदकिस्मती से हम लोग शनिवार शाम देर से शिमला पहुंचे, तब तक यह बंद हो चुका था और अगले दिन रविवार था, सो बंद ही था। यहां जाखू मंदिर भी देखना चाहिए। सौरभ के मुताबिक मनाली में वशिष्ठ बाथ, नग्गर कैसल भी है, नग्गर कैसल में रोजा, जब वी मेट जैसी कई फिल्मों की शूटिंग हुई है। यह जगह भी देखने लायक है। दो दिन एक्स्ट्रा हों तो मणिकर्ण, बिजली महादेव, बीर बिलिंग, तिर्थन वैली, जीभी और सैंज वैली जैसी ऑफ बीट लोकेशन कवर हो सकती हैं। रोहतांग पास नहीं गए तो हिमाचल का टूर ही बेकार है। पैरा ग्राइडिंग के लिए रोहतांग पास से लौटते समय सोलांग वैली भी जा सकते हैं।

मनाली पहुंचने के अगले दिन लोकल स्पाॅट ही देखने थे इसलिए सुबह आराम से सोकर उठे। ब्रेकफास्ट लेने के बाद दस बजे हम घूमने निकले। सबसे पहले हिडिंबा देवी के मंदिर में प्रसाद चढ़ाया। मंदिर से थोड़ा ऊपर पहुंचे तो देवदार के पेड़ों का खूबसूरत नजारा देखने को मिला, इस जगह का इन्ट्री टिकट सिर्फ दस रुपए था। लोकल लोगों ने बताया कि इस जगह कई फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है। यहां काफी समय गुजारने के बाद हम वन और नौका विहार स्थल पहुंचे। यहां भी टिकट सिस्टम था। 50 रुपए प्रति व्यक्ति इन्ट्री के लिए और फिर नौका विहार का अलग चार्ज था। नौका विहार के लिए मूड नहीं बना। यहां डेढ़ दो घंटे गुजर गए।

पास ही में मनाली का माल रोड था। जो कि शिमला की तुलना में काफी छोटा है। लेकिन यहां भीड़ काफी रहती है। माल रोड पूरा घूमने के साथ ही हल्की खरीद फरोख्त भी की। अब भूख भी लगने लगी थी। हां यहां खाने के रेट काफी ज्यादा हैं, लेकिन सैलानियों से सभी रेस्टोरेंट भरे पड़े थे। लंच लेने के बाद हम होटल लौट आए। अब रोहतांग पास देखना बाकी था। हम लोग मनाली के होटल से सुबह छह बजे निकल लिए थे, क्योंकि देर होने पर कारों का रेला लग सकता था। अटल टनल से गुजर रास्ते में एक से बढ़कर एक नजारे लेते हुए हम रोहतांग दर्रे पहुंच गए। रोहतांग पास के पहाड़ों पर ठीक ठाक बर्फ थी। इसके लिए स्पेशल सूट, ग्लब्स और मोजे हम पहले ही ले चुके थे। इसके साथ ही गाइड/ट्रेनर के साथ स्कीइंग और ट्यूब राइडिंग के लिए टिकट भी ले लिया था। चूंकि हम सुबह जल्दी होटल से निकले थे सो स्कीइंग स्थल के करीब तक हमारी कार पहुंच गई थी। बाद में आने वाले सैलानियों को गाड़ियों की लाइन लग जाने की वजह से एक-एक किलोमीटर पहले ही टैक्सी या पर्सनल गाड़ी छोड़नी पड़ी थी।

रोहतांग की बर्फ पर जमकर मस्ती की गई। हालांकि इस दौरान बर्फ पर ऊपर की तरफ चढ़ने पर ऑक्सीजन कम होने से दिक्कत होने लगी थी। गाइड ने इसके लिए पहले ही अलर्ट करते हुए पानी की बोतल साथ रखने और सांस लेने में दिक्कत होने पर दो-दो घूंट पानी पीने की सलाह दी थी। बेटे को यहां सबसे ज्यादा मजा आया। वह अकेला काफी ऊंचाई नाप आया। लेकिन इस पूरी ट्रिप के दौरान कुछ चीजें अच्छी नहीं लगीं। पर्यटकों ने किसी जगह को साफ नहीं रहने दिया है। पानी और शराब की खाली बोतलें पहाड़ों और खाई में जगह-जगह बिखरी पड़ी दिखीं। हमारे परिवार ने आदत डाल ली है कि चाहे शहर में मूव कर रहे हों या लम्बे टूर पर हों, अपने साथ कपड़े के कई खाली बैग रख लेते हैं। वेस्ट उसी में भरकर रास्ते में डस्टबिन दिखने पर गाड़ी रुकवा उसी में डाल देते हैं।

लौटते समय कई खूबसूरत झरने भी नजर आए, जहां हमने समय गुजारा। झरनों से गिरते बर्फीले पानी को खाली बोतल में भरकर कानपुर के लिए सहेजा। साहबजादे कुल्लू में लोकल फूड सिड्डू का स्वाद ले ही चुके थे एक तिब्बतियन रेस्तरां में इस बार मां-बेटे ने थुक्पा टेस्ट किया। मेरे मतलब के फ्रूट्स और ड्राई फ्रूट्स की कहीं कमी नहीं थी, इसलिए परहेजी खाने की ज्यादा तलाश नहीं करनी पड़ी। खाते पीते, रुकते रुकाते हम देर शाम मनाली अपने होटल लौट आए। अगले दिन सुबह आठ बजे चेक आउट कर हम चंडीगढ़ के लिए रवाना हो गए, जहां से शाम को कानपुर के लिए हमारी ट्रेन थी। यह ट्रिप शानदार रहा और पहाड़ के लोगों की खुशमिजाजी भी हमें काफी पसंद आई।

मेरे साथ रह सको तो मालूम हो तुमको पहाड़ की पर्वत सी ही होती हैं मुश्किलें… पहाड़ हम मैदान वालों को हमेशा से आकर्षित करते रहे हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि यहां के लोगों की जिंदगी कितने संघर्षों से भरी हुई है। वास्तविकता तो यह है कि खूबसूरत दिखने वाले पहाड़ों की गोद में जीवन का अंतहीन संघर्ष छिपा है। पहाड़ों पर रहने वालों की जिंदगी बेहद कष्टों भरी है। हम स्थाई रूप से रहने जाएं तो महीने भर में ही तारे नज़र आने लगेंगे, क्योंकि तब सुविधाओं से लैस होटल का सुख नहीं मिलने वाला।

शिमला और कुल्लू मनाली में आसमान से बातें करते पहाड़ों पर रात में जब रोशनी दिखती है तब यहां रहने वालों की कठिनाइयों से आप वाकिफ होते हैं। यहां के स्थाई निवासियों से बात करने पर पता चला कि पहाड़ों पर ऊपर बसें लोगों का महीने में एक या दो दिन तो घर का राशन पीठ पर लाद ऊपर चढ़ाने में ही बीत जाता है। कुफरी में एक व्यक्ति को भरा गैस सिलेंडर कंधे पर रख चट्टानों के बीच एक कठिन रास्ते से चढ़ते देखा। हमारे ड्राइवर ने बताया कि कुफरी जैसे ऊंचाई पर स्थित पर्यटक स्थलों पर सैलानियों के लिए खाने पीने की चीजें इसलिए महंगी हैं क्योंकि छोटे-छोटे काम करने वाले लोग पानी, कोल्ड्रिंक की बोतलें, मैगी, अंडे व अन्य सामान खुद ढोकर ऊपर ले जाते हैं।

पहाड़ों के ऊपर छोटे-छोटे घरों में रहने वाले बच्चों को स्कूल जाने के लिए दो घंटे पहले निकलना पड़ता है। जो गरीब परिवार से हैं उन्हें तो कई किलोमीटर पैदल ही स्कूल जाना पड़ता है। पहाड़ों पर रहने वाली महिलाएं भी बहुत मेहनती हैं। सुबह पांच बजे से देर शाम तक वह खेती से लेकर छोटे-बड़े व्यवसाय संभालती हैं। सेवों के बाग में पेड़ों पर फल लगने तक और उसके बाद फल बड़े होने तक उनकी देखभाल और उन्हें कीड़ों व बर्फबारी से सुरक्षित रखना आसान काम नहीं किया है। हर पेड़ को साफ सुथरा रखने सेए लेकर खाद पानी तक के काम में ज्यादातर महिलाएं ही लगी दिखाई देंगी। मनाली में कंधे और गोद में भेड़ के बच्चे व खरगोश उठाए यह महिलाएं दिन भर टहलती मिलेंगी। भेड़ और खरगोश के साथ फोटो शूट करवाने का क्रमशः तीस और बीस रुपए लेकर वे अपनी ग्रहस्थी चलाने में और बच्चों की पढ़ाई में पति का कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग करती हैं। पहाड़ों को काटकर रोड निर्माण के काम में भी बड़ी संख्या में मजदूरी करतीं महिलाएं नजर आती हैं। पुरुष भी अपने पालतू याक की सवारी और उनके साथ फोटो शूट करवा दिन भर में अच्छी खासी कमाई कर लेते हैं। कुफरी के ऊपर तक सैकड़ों खच्चर भी आमदनी का जरिया बने हुए हैं।

पहाड़ों पर रहने वालों को आपदाएं भी अक्सर झेलनी पड़ती हैं। कभी-कभी बारिश में पहाड़ों के दरकने से ऊपर बने घर भी ध्वस्त हो जाते हैं, जिसमें यहां रहने वालों की जिंदगियां दफन हो जाती हैं। पहाड़ी नदियों में जब बाढ़ आती है तो यहां के होटल से लेकर छोटे-बड़े सारे व्यवसाय ठप्प हो जाते हैं। पिछले साल शिमला में ऐसा ही हुआ था। बाढ़ आने से सैलानियों ने शिमला का रुख ही नहीं किया। जब सैलानी नहीं आए तो होटल, टैक्सी वालों को काम ही नहीं मिला। रोज कमाकर खाने वालों की हालत के बारे में आप सोच ही सकते हैं। दरअसल सीजन में की गई कमाई से ही इनका साल भर का राशन जुटता है। किसी ने क्या खूब कहा है, “माथे पर शिकन हो अगर तो ये महकती वादियां भी जहन्नुम नजर आती हैं।”

संजीव मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार