कांग्रेस-आप का पोलिटिकल लिव इन रिलेशनशिप खत्म

* दिल्ली सरकार में मंत्री गोपाल राय ने किया ऐलान, कहा-गठबंधन लोस के लिए था, हम विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेंगे * इस घोषणा के बाद दोनों ही पार्टियों में छिड़ सकता है वाक् युद्ध, इंडी गठबंधन को भी चोट पहुंचने का खतरा

0
1173

लखनऊ/नयी दिल्ली। 2024 के लोकसभा चुनाव में एक साथ आए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का पोलिटिकल लिव इन रिलेशनशिप खत्म हो गया है। दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय की घोषणा के बाद इस रिश्ते का गुरुवार को औपचारिक अवसान हो गया। अब दोनों पार्टियों की राहें जुदा-जुदा होंगी।

भाजपा को हटाने के नाम पर दिल्ली की राजनीति के दो कट्टर विरोधी दल आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए हाथ मिलाया था। यह समझौता सिर्फ दिल्ली के लिए था। पंजाब में दोनों पार्टियों की राहें अलग थीं। वहां दोनों दल चुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोंक रहे थे। राजनीतिक पंडितों ने इसे गठबंधन नहीं पोलिटिकल लिव इन रिलेशनशिप का नाम दिया था। यह रिश्ता कुछ वैसे ही था जैसे कि दो विपरीत लिंगी युवा एक-दूसरे को अच्छी तरह समझने के लिए और शादी के फैसले पर अंतिम रूप से पहुंचने के लिए एक समझौता करते हैं। इसे कानूनी भाषा में लिव इन रिलेशनशिप कहते हैं। उसके बाद वे दोनों फैसला करते हैं कि उन्हें शादी करनी है या नहीं।

ठीक उसी तरह का प्रयोग राजनीति में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी ने किया था। कभी एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन के रूप में जाने जाने वाले दोनों दलों ने मिलकर दिल्ली लोकसभा चुनाव लड़ा। समझौते के तहत दिल्ली में कांग्रेस को तीन और आम आदमी पार्टी को चार सीटें दी गई थीं। लेकिन परिणाम आशा के अनुरूप नहीं आए। भाजपा ने फिर दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें जीत ली हैं। इसके इतर दोनों पार्टियां पंजाब में एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रही थीं। पंजाब की सभी 13 लोकसभा सीटों पर दोनों पार्टियों ने अलग-अलग अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। वहां पर एक दूसरे के खिलाफ खूब बयानबाजी भी हुई, एक दूसरे पर कीचड़ उछाले गए किंतु दिल्ली में इससे परहेज किया गया।

गौर करने लायक एक सच्चाई ये भी है कि पूरे लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल एक मंच पर कभी नहीं दिखे। तब भी नहीं जब अमेठी और रायबरेली से फुरसत पाकर गांधी परिवार दिल्ली आ गया था और अपने प्रत्याशियों का प्रचार कर रहा था। दिल्ली में गांधी परिवार आम आदमी पार्टी के किसी प्रत्याशी का प्रचार करता नहीं दिखा जबकि अरविंद केजरीवाल ने गठबंधन धर्म का निर्वाह किया। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के कई प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार किया। इसमें कन्हैया कुमार का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे कन्हैया कुमार के लिए केजरीवाल ने खुद प्रचार किया था। बताते हैं कि एक मंच पर दिल्ली में नहीं आने का कारण यह भी था कि अरविंद केजरीवाल रायबरेली-अमेठी के मतदान के पूर्व लखनऊ तक आए किंतु रायबरेली या अमेठी नहीं गये। इससे गांधी परिवार नाराज था। तभी से कयास लगाए जा रहे थे दोनों पार्टियों के रिश्तों में खटास आ गई है।

ऐसा नहीं है की दोनों पार्टियों के नेताओं ने कोई मंच सजा नहीं किया। अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद इंडी गठबंधन ने एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई जुटान में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के सभी दिग्गज थे। उसमें राहुल गांधी भी थे और अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल भी थी, किंतु अरविंद केजरीवाल नहीं थे। वह उस समय जेल में थे इसके अलावा राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल कभी भी किसी मंच पर एक साथ नहीं दिखे। इसको लेकर राजनीतिक पार्टियों और आम जनता के बीच भी बहुत चर्चा हुई थी कि ऐसा क्यों हो रहा है कि गठबंधन के बावजूद दोनों नेता एक नहीं दिखाई दे रहे हैं। पर यूपी में गठबंधन के साथी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ राहुल गांधी में कई मंच साझा किए। उसका परिणाम यह हुआ कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों को यूपी में फायदा हुआ।

दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी का उदय भी कांग्रेस के विरोध के नाम पर ही हुआ था। शीला दीक्षित के कार्यकाल को लेकर अन्ना आंदोलन के समय से ही अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के खिलाफ मुखर रहे। उनकी राजनीति का आधार ही कांग्रेस की खिलाफत और कांग्रेस मुक्त भारत बनाना था। पर समय की मजबूरी देखिए अरविंद केजरीवाल लोकसभा सीटों के लिए इतने व्याकुल थे कि उन्हें कांग्रेस से भी समझौता करने में कोई परहेज नहीं था। तमाम आरोपों के बावजूद अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस से गठबंधन किया और दिल्ली का लोकसभा चुनाव लड़ा। लेकिन जनता ने इस रिश्ते को मना कर दिया। शायद इसीलिए अलग अलग लड़ने का फैसला लिया गया है।

अब देखना यह है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी क्या कहकर एक-दूसरे का विरोध करेंगे। जो भी होगा दिलचस्प होगा। पर एक बात तो तय है कि दिल्ली का लिव इन रिलेशनशिप बहुत सफल नहीं रहा है।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक