जब शनिदेव एवं महाकाल कैद हो गए

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जब शनिदेव एवं महाकाल कैद हो गए… लंका के राजा रावण ने कठोर तप करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे वर के रूप में मांगा कि उसकी मृत्यु वानर और मानव के अतिरिक्त किसी के हाथों न हो। वरदान प्राप्ति के उपरांत वह घमण्डी हो गया। चारों दिशाओं में उसने आंतक मचा दिया। यहां तक की उसने शनिदेव और महाकाल को लंका में लाकर बंदी बना जेल में उल्टा लटका दिया।
वे दोनों भगवान शिव के भक्त थे। अत: अपने ऊपर आई विपत्ति से निजात पाने के लिए भगवान शिव का स्मरण करने लगे।

अपने भक्तों की करूण पुकार सुन कर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें कहा, आप दोनों चिंता न करें श्री विष्णु जल्द ही रावण के आंतक को समाप्त करने के लिए पृथ्वी पर जन्म लेंगे और मैं हनुमान बनकर अवतार धारण करूंगा और आपको इस कैद से मुक्ति दिलाऊंगा।

कुछ समय उपरांत राम अवतार हुआ। राम जी को जब राजा बनाने का समय आया तो परिस्थितियों ने कुछ ऐसा पलटा लिया की अपने पिता की आज्ञा मान कर राम जी पंचवटी में आ कर रहने लगे। कुछ दिन बाद रावण ने राम जी और लक्ष्मण जी की अनुपस्थिति में सीता जी का हरण कर लिया। जब रावण सीता जी का हरण करके ले गया तो उन्हें आशोक वाटिका में कैद कर दिया।

जब हनुमान जी सीता जी की खोज में लंका गए तो उस समय उन्होंने न केवल रावण की अशोक वाटिका उजाड़ दी बल्कि रावण के पुत्र अक्षय कुमार का वध भी कर दिया। अंत में मेघनाथ ने हनुमान जी को ब्रह्मपाश में बांध दिया और अपने पिता के सम्मुख ले गया। रावण ने उनकी पूंछ में आग लगा दी। उन्होंने अपनी पूंछ से समस्त लंका में आग लगा दी लेकिन फिर भी वह श्याम वर्ण नहीं हुई। उन्हें इस बात की बहुत हैरानी हुई। उन्होंने चारों और दृष्टि घुमाई तो देखा शनिदेव और महाकाल जेल में उल्टे लटक रहे हैं। वह उनके समीप गए और शनिदेव को रावण की कैद से मुक्ति दिलवाई।

फिर हनुमान जी के प्रताप और शनिदेव की दृष्टि पड़ने से लंका का नाश हो गया और वह राख में बदल गई। राम रावण युद्ध के उपरांत जब रावण मृत्यु को प्राप्त हुआ तो हनुमान जी ने महाकाल को भी रावण की कैद से मुक्त करवा लिया। शनिदेव हनुमान जी से बोले, मैं आपका यह उपकार सदैव स्मरण रखूंगा।

हनुमान जी मुस्कराए और शनिदेव को दिव्य दृष्टि प्रदान कर अपने रूद्र रूप से रू-ब-रू करवाया। अपने इष्ट को अपने सम्मुख पाकर वह भाव विभोर हो उठे और उनके चरणों में गिर गए। हनुमान जी ने उन्हें गले से लगा लिया। जो भी स्त्री पुरूष इस कथा को पढ़ते एवं सुनते हैं उन पर सदैव शनिदेव और हनुमान जी की कृपा बनी रहती है, उन्हें कभी किसी प्रकार का भय नहीं सताता।