चैतन्यता के लिए ओम का उच्चारण

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आनन्द की अनुभूति के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर पूर्ण स्वस्थ हो। आनन्द की अनुभूति तभी की जा सकती है, जब मन-मस्तिष्क किसी भी प्रकार के कष्ट-तनाव से मुक्त हो। शारीरिक एवं मानसिक कष्ट हो तो व्यक्ति के लिए आनन्द का कोई भी पल सहज नहीं होता। लिहाजा आनन्द की सुखद अनुभूति के लिए परम आवश्यक है कि व्यक्ति पूर्णरूपेण मानसिक एवं शारीरिक स्तर पर किसी भी प्रकार के कष्ट से मुक्त हो।

शारीरिक एवं मानसिक विकार से दूर रहने के लिए व्यक्ति को सनातन परम्परा-सनातन संस्कृति की रीतियों-नीतियों का अनुपालन करना चाहिए। निश्चय ही सनातन संस्कृति-सनातन परम्परा अपनाने से जीवन में एक बदलाव दिखेगा। सनातन परम्परा में ओम के उच्चारण का विशेष महत्व माना गया है। ओम को वस्तुत: ब्राह्मांड का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि ओम का उच्चारण करने मात्र से एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। जिससे व्यक्ति का आभा मंडल प्रभाववान बनता है। विशेषज्ञों की मानें तो ओम का जप करने से असंख्य शारीरिक लाभ मिलते हैं। जिससे शारीरिक एवं मानसिक चैतन्यता प्राप्त होती है। इतना ही नहीं, ओम को शक्ति का प्रतीक भी माना जाता है।

विशेषज्ञों की मानें तो ओम जप को योग में भ्रामरी के तौर पर जाना जाता है। इस प्रकार देखें तो ओम धर्म-आध्यात्म से लेकर यौगिक क्रियाकलाप में विद्यमान एवं प्रभाववान है। ओम का उच्चारण करने से शरीर में आवश्यक ऊर्जा के लिए शक्ति का प्रवाह होता है। इतना ही नहीं, इस अवधि में शरीर में रसायनिक उत्प्रवाह भी होता है। मसलन कम्पोज एवं डिस्प्रिन जैसे रसायनिक तत्व उत्पन्न होते हैं। खास यह कि यह रसायनिक तत्व अपेक्षित एवं आवश्यकता के अनुसार ही उत्पन्न होते है। जिससे रसायनिक तत्व का शरीर में संतुलन बना रहे।

लिहाजा ओम का जाप करने वाले व्यक्ति को गहरी एवं सुखद नींद आती है। इतना ही नहीं, व्यक्ति आलस्य से भी दूर रहता है। ओम का उच्चारण व्यक्ति को सदैव स्फूर्तिवान बनाए रखता है तो वहीं व्यक्ति हमेशा तनाव मुक्त रहता है। सुखद एवं शांत नींद आने से व्यक्ति हमेशा एक ऊर्जा एवं चैतन्यता का अहसास करता है। चूंकि ओम का उच्चारण करने से फेफड़ा एवं पेट भी सक्रिय होता है। लिहाजा श्वसन क्रिया से लेकर पाचन तंत्र बेहद सुचारु रहता है। आशय यह कि ओम का उच्चारण व्यक्ति को एक खास ऊर्जा एवं शांति से परिपूरित कर देता है। इतना ही नहीं, ओम का उच्चारण रक्त का संचार संतुलित करता है। जिससे व्यक्तित्व में एक निखार आता है।

ओम के उच्चारण से शरीर में एक कंपन होता है। जिससे रक्त संचार सुद्रढ़ होता है तो वहीं थाइराइड़ जैसी समस्याओं का भी निदान होता है। लिहाजा इस दृष्टि से देखें तो ओम का उच्चारण रोग निवारक भी है। ओम का उच्चारण करना वस्तुत: ईश्वर का स्मरण करना है। ओम का उच्चारण करनेे के लिए आवश्यक आसन लगा कर बैठें। रीढ़ की हड्डी, गर्दन एवं सिर को एकदम सीधा रखना चाहिए। इसके पश्चात ओम का उच्चारण करना चाहिए।

ओम का उच्चारण करते समय दोनों आंखों को बंद रखना चाहिए। गहरी श्वास छोड़ते ही ओम का उच्चारण करना चाहिए। व्यक्ति अपनी सुविधा एवं सहूलियत को ध्यान में रख कर ओम का उच्चारण कर सकता है। ध्वनि एवं धमनियों का यह उच्चारण बेहद शक्तिशाली है। लिहाजा व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक है कि ओम का उच्चारण दैनिक चर्या का हिस्सा बने। … क्योंकि तभी जीवन में आनन्द की सुखद अनुभूति की जा सकती है।